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Thursday 20 August 2009

गाँव की यादे सुस्पेंस के साथ

मेरा बचपन गाँव मैं बीता ,तो जैसे की गाँव मैं होता ही हैं ,अंधविश्वास ,अपने गाँव बालो की बात सुन सुन कर मैं ब्व्ही बहुत अन्धविसवासी हो गया था ,हर समय ऐसा ही लगता था ,की यहाँ कुछ हैं वहां कुछ हैं ,सायद भुत अब यहाँ से निकलेगा ,या यहाँ से निकलेगा, बस जब भी कभी अकेला होता था ,तो अपने आप भुत को कल्पनाओ मैं पैदा कर लेता था ,फिर बाद मैं मैं वो किस्से सच बता कर गाँव वालो को सुनाता था ,गाँव से लगा हुआ ही हमारा एक आम का बाग़ हैं ,उस बाग़ के पास एक जामुन का पेड़ हैं ,गाँव के लोग उस पेड़ के बारे मैं कहते थे ,की यहाँ भुत रहता हैं ,तो दिन के समय हम कहते थे ,की कोई भुत नही हैं ,सब आपकी मन की कहानी हैं ,पर अन्दर अन्दर हमे भी लगता था ,की सायद कोई रहता हो ,गर्मियों के दिन थे ,दोपहर का समय ,लू अपने सबाब पर थी ,बस हमारी मण्डली ने भी प्लान बनाया और चल दिए अपने बाग़ की और ,हम पॉँच थे ,पांचो हमेशा साथ रहते ,बस तपती दोपहर मैं पहुँच गये ,जामुन के पेड़ के पास ,उन सब का नेत्रत्ब करते हुए मैं सबसे आगे चल रहा था ,मन मैं खुशियों के समंदर के साथ साथ गर्व के भावः भी ऐसे आ रहे थे ,की मनो मैं सुभास चंद्र बोश हु ,और हिंद फौज को leke जा रहा हु ,बस जैसे ही जामुन के पेड़ के पास पहुंचे ,मैं ऐ अपने साथियों को देखा तो वो थोड़ा पीछे रह गये थे ,
बस जल्दी जल्दी जामुन खाने की लालसा ,मुझे रोकी नही जा रही थी,बस पेड़ के नीचे पहुँचते ही ,मैं पेड़ पे चड़ने की लिए जैसे ही पेड़ को देखा ,तो मैं गस खाकर गिर गया ,पेड़ पर पर एक भूरे बाल का आदमी बैठा था ,उसका muh लाल था ,बस गाँव वालो की सारी बात याद आगई ,और फिर बड़े ध्यान से वो देख भी मुझे ही रहा था ,बस मैंने आब न देखा ताब ,मैं वहां से भाग लिया ,मेरे दोस्तों ने मुझे भागते देखा ,तो वो भी पीछे की तरफ़ भाग लिए,क्योकि अक्सर हमारे पीछे लोग भागते ही रहते थे ,तो अगर कोई भागता था ,तो सब भाग लेते थे ,अब बचपन मैं चोरी का मज़ा ही कुछ और हैं ,भागते भागते एक ने मुझसे पुच ,की हम भाग क्यों रहे हैं ,अचानक मेरे अन्दर हिम्मत का ज्वालामुखी फट गया ,और मैं वहीँ रुक गया ,मैंने सोचा की इनसे अगर सच कहूँगा ,तो ये मेरा मजाक उडायेंगे,औए कहंगे गाँव मैं तो बड़ी देंगे मारता था ,अब क्या हुआ ,मेरे अन्दर का सुभाष चंद्र बॉस जो ,चलगया था ,फिर वापिस आ गया ,फिर क्या था ,मैं अपने पुराने जोश मैं लौट आया था ,मैंने उनसे कहाँ ,की मैं देख रहा था ,की कहीं हमारी एकता ख़तम तो नही होगयी ,यही देख रहा था ,बस फिर हम दोबारा पेड़ की तरफ़ चल दिए ,मैंने हिम्मत दिखा तो दी थी ,पर आते हुए सेना का कमांडर ,अब एक सिंपल सिपाही बन गया था,और सबसे पीछे चल रहा था ,क्योकि उससे लग रहा था ,की पता नही वो किस पे हमला कर दे .धीरे धीरे हम पेड़ की और बढ़ रहे था ,दिलो की धड़कन बढती जा रही थी ,जैसे ही हम पेड़ के पास पहुंचे ,एक आदमी पेड़ से कूदा ,बस कुद्दना हुआ ,और मेरा भागना ,
काश उस दिन कोई ओलंपिक की रेस हुई होती,तो शायद,मैं इंडिया को एक गोल्ड मैडल और दिला ही देता ,पर अफ़सोस मेरी उस रस को देहने वाला भी कोई न था ,और तो और मेरे दोस्त भी बो रेस न देख सके
पता हैं क्यों ,क्योकि वो भागे ही नही
अब आप पूछेंगे ,की क्यों नही भागे ,तो हुआ ये था की बो जो पेड़ से कूदा था ,बो हमारा बाग को घेरने वाला था ,
फिर क्या था ,दो महीने तक इस घटना का varnan गाँव मैं होता रहा, और मैं कर के भी कुछ न कर सका

8 comments:

  1. आप हिंदी में लिखते है ,
    बहुत ख़ुशी की बात है,
    हिंदी परिवार में आप का स्वागत है ,
    उम्मीद है आप अपने लखे के द्बारा हमें अनुग्रहित करते रहेगे
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  2. स्वागत है ..मेरा बचपन भी गाँव मे बीता ..लेकिन अंध विश्वाश नही था , इतना ज़रूर कहूँगी..!

    अनेक शुभकामनायें !

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://kavitasbyshama.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

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  3. अच्छा कहानी बतायी है यार सच्चाई है तो बढियाहै

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  4. अपने अनुभवों को बानानते का अनुभव ही अलग है. जारी रहें.
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    उल्टा तीर पर पूरे अगस्त भर आज़ादी का जश्न "एक चिट्ठी देश के नाम लिखकर" मनाइए- बस इस अगस्त तक. आपकी चिट्ठी २९ अगस्त ०९ तक हमें आपकी तस्वीर व संक्षिप्त परिचय के साथ भेज दीजिये. [उल्टा तीर] please visit: ultateer.blogspot.com/

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  5. gavn ki yadein to bas yadein hoti hai... mera bhi gavn hai kuch meri bhi yadein taza ho gayi hai.....

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  6. bhai saab gaon ki yad sespence k sath me apne mast likha h full sespence banaye rakha h last tak ase story to film vale bhi nahi likthe sala suru me hi pata lag jata h k kya hone wala h mast h bhai

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are kuch keh bhi do yaro