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Saturday 20 June 2009

मेरी यात्रा

मैं बस मैं बैठा और गजिया बाद (विजय नगर) रेलवे स्टेशन पहुंचा ,मैं पहले ही लेट हो गया था ,जल्दी जल्दी टिकेट लेने गया ,लेकिन वहां भीड़ देख के मेरे होश उद्द गये ,फिर जैसे तैसे मैं टिकेट लिया ,और भगा प्लेटफार्म की और जहाँ मेरी ट्रेन आनी थी.ट्रेन का टाइम हो गया था,अनौंसमेंट भी हो चुका था ,मेरे प्लेटफार्म पर पहुँचते ही ट्रेन आ गयी,मैंने भाग कर ट्रेन मैं अपनी जगह बना ली ,ट्रेन मैं भीड़ बहुत थी ,लेकिन मैं खुश था की मैंने ट्रेन पकड़ ली थी ,मैं नॉएडा रह रहा था ,और मनगेमेंट ऑफ़ बिज़नस एडमिनिस्ट्रेशन के लिए कोचिंग ले रहा था , बहुत दिनों के बाद घर जा रहा था ,मैं बहुत खुश था ,मैं ट्रेन मैं सही तरीके से खड़ा भी नही हो पा रहा था ,मेरे बगल मैं ही एक १७-१८ साल का लड़का खड़ा था,कुछ देर बाद लड़का मुझसे पूछता हैं ,की भइया ये ट्रेन कानपूर ही जा रही हैं न,मैंने उस लड़के की और बड़ी जलालत भरी नजरो से देखा ,और सोचा पता नही पढ़े लिखे भी क्यों अनपढ़ वालो बाली बात करते हैं, क्या ट्रेन मैं चढ़ने से पहले देख नही सकते । की कोंसी ट्रेन मैं चढ़ रहे हैं हैं,फिर मैंने उससे कहा,के यार देख के चढा करो , ये ट्रेन कानपूर नही ,देहरादून जा रही हैं,उस लड़के के होश उड्ड गये,वो घबरा गया,मैं उसे सात्वना देने लगा .की कोई बात नही ,अगले स्टेशन पे उतर जाना ,पर वो तो पुरी तरह घबरा चुका था,उसने अन्दरबैठे लोगो से पुचा ,की या ट्रेन कहाँ जा रही हैं , तो वो बोले के कानपूर जा रही हैं.अब घबराने की बारी मेरी थी ,मैंने सोचा ये क्या हो गया,आज मैं ही ग़लत ट्रेन मैं आ गया ,फिर भी मैंने हिम्मत नही हारी,मैं बोला कोई बात नही ,मैं आगे हापुर उतर जाऊंगा,पर वो ट्रेन हापुर नही जाती थी
उसका रास्ता ही दूसरा था ,अब मैं समाज नही पा रहा था ,की क्या करून, फिर भी मैंने हिम्मत नही हारी , ऐसा मैं आपको पता ही हैं,सलाह देने वालो की लाइन लग जाती हैं ,सभी अपने विचार प्रकट कर रहे थे,और मैं कभी अपने आप को देख रहा था, कभी अपनी जेब को जिसमे बस कुछ पैसे ही थे ,फिर स्टेशन बित्ते गये ,और मैं ट्रेन मैं बैठा रहा, जब ट्रेन अलीगढ पहुँच गयी ,तब मैं वहां उतर गया उतरना पड़ा,क्योकि टी.टी मुझसे तिक्कत मांग रहा था,मैं टी टी को गच्चा देकर ट्रेन से उतर गया ,और बहार गया ,ट्रेन का बारे मैं पता करा तो पता चला ,पहले मोरादाबाद जाना पड़ेगा ,और मोरादाबाद के लिए सुबह ही हैं ट्रेन ,मैं रात को १२ बजे अलीगढ मैं खड़ा हु ,फिर भी मैंने हिम्मत नही हारी,मैं बस स्टाप की और चल पड़ा आधा घंटा चलने क बाद ,मैं बस स्टाप पहुँच गया .वहां पता चला, की बस सुबह ही हैं
मैं अपना सर पकड़ कर बैठ गया और सोचने लगा ,पता नही किसका मुह देखा था ,आज,फिर मैं वहां बैठा गया ,वो एक चाय बाले का ठेला था,वो आके मुझसे कहता हैं ,की भइया चाय लोगे, मैं मन कर देता हु, तो कहता हैं यहाँ मत बैठ ,धंधे का टाइम हैं कहीं और जा ,सायद ही इतना मुझे जिन्दगी मैं किसी ने दुत्कारा हो,मैं हैरान प्रशन कभी आपने आप को कोस रहा था, कभी उस घड़ी को कोस रहा रहा था,जब मैं घर जाने के लिए नॉएडा से चला था
किसी तरह सुबह को बस मैं बैठा ,और अगले दिन शाम को अपने घर पहुँचा ।
इस तरह ४ घंटा का सफर मैं २० घंटे मै तय किया
क्या कभी आपके साथ भी ऐसा हुआ हैं क्या
अभय (ब्रज दीप)

1 comment:

  1. हाँ ऐसा हुआ है मेरे साथ भी,,, और बिलकुल वही हुआ किसी ने मुझसे पुछा कि ये ट्रेन, फलाने जगह जा रही है और मेरे मन में भी ठीक वही विचार आये थे 'न जाने कहाँ कहाँ से चले आते हैं' ठीक वैसे ही मुझे पता चला मैं ही गलत हूँ और ठीक वैसे ही मुझे उतरना पड़ा और ठीक वैसे ही कुछ घंटों का सफ़र कई घंटों में पूरा हुआ...
    आपकी लेखनी ने इस सस्मरण को आवाज़ दे दी बहुत ही भावः पूर्ण लगी.. यूँ लगा जैसे आप कह रहे हैं और हम सुन रहे हैं.. अच्छा लिखते हैं बस लिखते रहिये....

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are kuch keh bhi do yaro