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Tuesday 30 March 2010

मेरी पहली यात्रा

जून का महीना था ,लू के थपेड़े अपने शबाब पे थे ,बस १२ बजे नहीं और वो निकल लिए लोगो को अपनी हवा दिखाने,दोपहर को उनका सामना बस हम जैसो की टोली ही कर पाती थी,क्योकि अगर उन्हें अपने अंदाज़ पर गुरुर था ,तो हम भी किशोर अवस्था की देहलीज़ पे थे ,और उस समय तो लू क्या चीज हैं ,पहाड़ को भी चकनाचूर करने का हौसला होता हैं ,बस जहाँ लोगो की दोपहर घर मैं बीतती थी ,तो वहां हमारी खेतो की मेढ़ो पर,किसी बाग़ मैं,पेड़ की किसी डाल पर,और शाम तक इतने कारनामे हो जाते थे ,की घर पर धोल पूजा का बंदोबस्त हो सके ,उधर लू अगले दिन की तय्यारी करने ke लिए बापिस लोटता था ,और हम रात को आराम से सोने के लिए धोल पूजा कराने के लिए घर लौटते थे ,घर लोटते ही धोल पूजा का पता नहीं कोनसा अध्याय शुरू हो जाता था ,अच्छी तरह धोल पूजा के बाद मन बड़ा प्रसनचित्त हो जाता था ,ऐसा लगता था ,पता नहीं कोनसा बोझ था मन पे जो हट गया हैं ,पर अच्छे दिन कहाँ ज्यादा दिन तक साथ देते हैं,एक दिन शाम को सूचना मिलती हैं की हमने पुरे साल जो गुल खिलाये हैं ,वो आज पुरे खिल चुके हैं ,मतलब हमारा रिजल्ट आउट हो चूका था ,बस हमे उसे ग्रहन करने जाना था,मैं अपने घर से थोडा दूर पढता था,सो सुबह ही वहां के लिए निकल गया ,वहाँ पौहेंचते ही मन मैंअजीब अजीब ख्याल आने लगे,खैर मन के आन्दोलन को रोक कर हमने स्कूल मैं प्रवेश किया ,काफी देर के गहन इंतज़ार के बाद हमे पता चला के हमने किला फ़तेह कर लिया हैं ,बस फिर क्या मन फूला नहीं समां रहा था ,मन बड़ा गर्ब महसूस कर रहा था ,और मन ही मन हम अपने आप को सब्बसी देने मैं व्यस्त थे ,की क्या बात हैं तेरी ,बिना पढ़े पढाई कर दी पूरी ,अब इतने अथक प्रयासों के बाद जो ये सफलता प्राप्त की थी ,उसका आन्नंद लेने की लिए कहीं पर यात्रा की स्तिथि बन चुकी थी ,बस उसे अंतिम रूप दिया जा रहा था,हमारे एक मित्र के पास मारुती ८०० थी ,अब किसी तरह उसके घर से वो गाडी लेनी थी ,क्योकि घर वालो ने तभी हाल फिलहाल मैं गाडी ली थी ,और हमे वो कैसे देदेते,काफी मशक्कत के बाद पूरा प्लान पारित हो चूका था ,उसके चरित्र भी गढे गए थे ,की किस व्यक्ति को क्या काम करना हैं ,सभी ने अपना काम ढंग से किया ,और हमारी फिल्म हिट हो गयी ,आगे की साइड बैठ कर मैं ऐसा अनुभव कर रहा था ,जैसा एक राजा भी नहीं करता होगा ,जब वो अपने रथ पर सवार होकर भ्रमण के लिए जाता होगा ,चंदे के पैसे से गाडी ने अपनी पेट पूजा कर ली थी ,और वो हमे पुरे जोर शोर के साथ ढो रही थी ,तो यात्रा का हिसाब कुछ ऐसा था ,की हमने घाटियों मैं जाने का मन बनाया था ,क्योकि उन तपती गर्मियों मैं उससे सुन्दर और कोई जगह हो ही नहीं सकती थी ,मन के संकुचन को दीमाग से निकल के रेड बत्ती जला दी थी ,क्योकि वो हमे बार बार घर की धोल पूजा की याद दिला रहा था ,की अगर समय पर घर नहीं पहुंचे ,तो कहाँ कहाँ से डेंट निकल बना पड़ेगा ,इसलिए रेड बत्ती जलने के बादहम भी यारी की बाटी मैं मसगुल हो गए ,खैर मस्ती करते करते वहाँ पहुंचे ,ड्राईवर हमारे पास एक ही था ,जो गाडी चलाना जनता था ,सो वो भी अपनी मोनो पोली का भरपूर आनंद ले रहा था ,अपनी मन मर्ज़ी से गाडी को भगा रहा था ,खैर प्लेन मैं तो हम निसंकोच मन से उसकी कला का आनंद ले रहे थे ,पर जैसे ही हमने घाटियों मैं प्रवेश किया ,तो सुन्दर सुनदर गड्ढे देख कर थूक पे थूक निगल रहे थे ,अब ड्राईवर से न कुछ कहते बनता था ,न कुछ सुनते,बस अपनी सीट पकडे बैठे हुए थे ,कुछ समय पश्चात हम अपनी मंजिल पर पहुंच चुके थे बस वहां पर स्नान के बाद,घर की रवानगी की तैयारी शुरू हो चुकी थी ,बस थोडा ड्राईवर को समझाने की कोशिस की कैसे चलना हैं ,पर वो हमारे विचारों को ऐसे सुन रहा था ,जैसे प्रेइमारी का मास्टर बच्चो के पहाड़े सुनता हैं ,जिसे नहीं आते हैं ,खैर मन पक्का करके ,हम फिर से सीट पर विस्थापित हो चुके थे, ड्राईवर साहब ने सेल्फ मारकर गाडी को उड़न अबस्था मैं कर दिया था ,उस समय हमे अहसास हुआ की हमारी बातो का इन पर उतना ही असर हुआ हैं ,जितना केन्द्र शासित पार्टी पर विपक्ष पार्टी का होता हैं ,खैर भैया फूल कांफिडेंस के साथ गाडी की रेल बनाये जा रहे थे ,जैसे तैसे हम उन विचारों जैसी गहरी खायियो से नीचे पहुंच चुके थे ,बिचलित मन कुछ हद तक सैट हो गया था ,गाडी ९० मील की रफ़्तार से दौड़ रही थी ,अचानक गाडी ने एक साइड को भागना शुरू कर दिया था ,एकदम से हुए इस कार्य ने हमे ऐसा कर दिया था ,जैसे सोये हेहुए कुत्ते की किसी ने पूंछ पकड़ के मरोड़ दी हो ,सभी ने अपने अपने हत्थे कब्ज़ा लिए थे ,और एकमत से ड्राईवर साब का गलियों के साथ स्वागत कर रहे थे ,और बेचारे हमारे ड्राईवर साब अणि टांगो को अपनी छाती से लगाये गाडी को कण्ट्रोल करने की नाकाम कोशिस मैं व्यस्त थे ,उस समय भी मन में विचार ये आ रहे थे,की बैसे तो बचने के कोई चांस नहीं हैं ,बी चांस अगर बच भी गया ,तो घर बाले इस बार तो .......................,इतना दुःख वहां पर गाडी के एक्सीडेंट का नहीं हो रहा था ,जितना घर वालो के बारे मैं सोचने भर से हो रहा था ,खैर ध्यान फिर से गाडी पे जाता हैं ,हमारी गाडी पुपुरी स्पीड के साथ रोड क साइड मैं खड़े पेड से जा टकराती हैं ,और गाडी की ड्राईवर वाली साइड ठूक जाती हैं,सभी व्यक्ति शकुसल बच जाते हैं और गाडी से बहार निकलते हैं ,तो पता चलता हैं ,की गाडी कोमा की अबस्था मैं हैं ,और अब इसे आइसीयू मैं ही डालना पड़ेगा,खैर जिसकी गाडी थी उसने अश्रु धारा प्र्भाहित करनी शुरू कर दी थी ,और हम उसे खड़े हुए ऐसे निहार रहे थे ,जैसे इलेक्शन हारने के बाद कैंडीडेट को उसके सपोर्टर निहारते हैं


खैर कुछ देर निहारने के बाद हमने उसे दिलासा देने की कोशिस की ,की सब घर चलन्गे और तेरे घर वालो से माफ़ी मांगेगे,पर उस समय उसे न कुछ सुने दे रहा था ,न कुछ दिखाई ,बस जैसे एक साधू अपनी भक्ति मैं धुन रहता हैं ,वो अपने रोने मैं धुन था ,जंगलो मैं भरी दोपहर मैं हम खड़े थे ,दिमाग के सभी पुर्जे आराम से निकल लिए थे और जो थे उन्होंने काम करना बन्द कर दिया था

कुछ समय पश्चात alt+clt+del मारने के बाद दिमाग को फिर से संचालित किया ,और फिर नए प्लान की योजना पर विचार शुरू हो गया था फिर आगे तो आप जानते ही हैं हमारी कहानी फिर ...............................................................................................................................................................!





तो ये थी हमारी सबसे पहली यात्रा

आपके विचारों का स्वागत रहेगा हमारी यात्रा के बारे मैं





आपका अपना

ब्रज दीप सिंह (अभय)

2 comments:

  1. अच्छा सैटायर लिखा है। दुर्घटना के बारे में मुझे पहले से जानकारी थी और दुग्ड्डा की इस यात्रा में भला ये हुआ कि आप लोगों का गड्डा बांधकर नहीं लाना पड़ा। खैर अच्छा लिखा है। कुछ ब्लंडर हैं नीचे लिख देता हूं।
    सीट पर 'विस्थापित'
    का मतलब बेदखल कर दिए जाना होता है। अपनी ज़मीन से बदर कर दिए जाना। यानी किसी स्थान को छोड़ना और सीट पर बैठे थे। इसलिए इसे स्थापित लिखें।
    'केन्द्र शासित पार्टी'
    कोई पार्टी स्वायत्तशासी होती है केंद्र शासित नहीं। केंद्रशासित राज्य होते हैं जैसे आपके पड़ोस में चंडीगढ़। इसलिए इसे बदलें और लिखें सरकार पर जितना असर विपक्ष का।

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  2. yatra anwarat jaari rahe aapki aur aapke blog ki...

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are kuch keh bhi do yaro